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Sidhu Kanhu Chand Bhairaw सिध्दू कान्हु चांद भैरव Santhal Vidroh

भारतीय स्वतंत्रता सेनानी सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू सगे भाई थे जिन्होने 1855–1856 के सन्थाल विद्रोह का नेतृत्व किया था। सन्थाल विद्रोह ब्रिटिश शासन और भ्रष्ट जमींदारी प्रथा दोनों के विरुद्ध था।[1] सन २००२ में भारत सरकार द्वारा जारी डाक-टिकट में सिद्धू-कान्हू आरंभिक जीवन सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू का जन्म वर्तमान झारखण्ड राज्य के भोगनाडीह नामक गाँव में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था। सिद्धू मुर्मू का जन्म 1815 ई. को हुआ था एवं कान्हू मुर्मू का जन्म 1820 ई. को हुआ था। [2] संथाल विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाने वाले इनके अन्य दो भाई भी थे जिनका नाम चाँद मुर्मू और भैरव मुर्मू था। चाँद का जन्म 1825 ई. को एवं भैरव का जन्म 1835 ई. को हुआ था। इनके अलावा इनकी दो बहनें भी थी जिनका नाम फुलो मुर्मू एवं झानो मुर्मू था। इन 6 भाई-बहनों के पिता का नाम चुन्नी माँझी था। [3] राँची के सिद्धू-कान्हू पार्क का प्रवेशद्वार संथाल विद्रोह का नेतृत्‍व संथाल विद्रोह (हूल आंदोलन) का नेतृत्व सिद्धू-कान्हु ने किया था । सिद्धू-कान्हु के नेतृत्व में इस लड़ाई में संथाल परगना के स्थान...
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बिरसा मुंडा Birsa Munda

बिरसा मुंडा भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता बिरसा मुण्डा  का जन्म 15 नवम्बर 1875 के दशक में छोटा किसान के गरीब परिवार में हुआ था। मुण्डा एक जनजातीय समूह था जो  छोटा नागपुर पठार  ( झारखण्ड ) निवासी था। बिरसा जी को 1900 में आदिवासी लोंगो को संगठित देखकर ब्रिटिश सरकार ने आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें 2 साल का दण्ड दिया।  [1] बिरसा मुंडा आरंभिक जीवन इनका जन्म मुंडा जनजाति के गरीब परिवार में पिता-सुगना पुर्ती(मुंडा) और माता-करमी पुर्ती(मुंडाईन) के सुपुत्र बिरसा पुर्ती (मुंडा) का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखण्ड के खुटी जिले के उलीहातु गाँव में हुआ था। जो निषाद परिवार से थे, साल्गा गाँव में प्रारम्भिक पढाई के बाद इन्होंने चाईबासा जी0ई0एल0चार्च(गोस्नर एवंजिलकल लुथार) विधालय में पढ़ाई किये थे। इनका मन हमेशा अपने समाज लगा रहता था|ब्रिटिश शासकों द्वारा की गयी बुरी दशा पर सोचते रहते थे। उन्होंने मुण्डा|मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिये अपना नेतृत्व प्रदान किया।1894 में मानसून के छोटा नागपुर पठार, छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल ...

Ol Chiki ओलचिकी

ओलचिकी लिपि ऑल चिकी एक भारतीय लिपि है, जो संथाली भाषा लिखने में प्रयुक्त होती है। इसका आविष्कार पंडित रघुनाथ मुर्मू ने वर्ष 1925 में किया था, संताली के लिए आधिकारिक लेखन प्रणाली है, जो भारत में एक आधिकारिक क्षेत्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त एक आग्नेय भाषा है। इसमें 30 अक्षर हैं, जिनके रूपों का उद्देश्य प्राकृतिक आकृतियों को उद्घाटित करना है। लिपि बाएँ से दाएं लिखी गई है, और इसके दो रूप हैं (चपा और उसरा); बाद वाले का यूनिकोड नहीं है। दोनों रूपों में, इस वर्णमाला का आविष्कार बिना किसी अक्षर केस के हुआ था। ऑल चिकी प्रकार वर्णमाला भाषाएँ संथाली भाषा आईएसओ 15924 Olck, 261 दिशा बाएँ-से-दाएँ यूनिकोड एलियास Ol Chiki यूनिकोड रेंज U+1C50–U+1C7F वर्णमाला वर्ण वर्ण का नाम आईपीए (IPA)[1] लिप्यन्तरण स्वरूप/आकार[2] ALA-LC[3] Zide[1] देवनागरी[4] बंगाली[4] ओड़िया[4] ᱚ la /ɔ/ a ọ अ/ऑ অ ଅ जलती अग्नि ᱟ laa /a/ ā a आ আ ଆ कुदाल से खेत में काम करना ᱤ li /i/ i i ई ই ଇ झुकने वाला पेड़ ᱩ lu /u/ u u उ উ ଉ रसोई के लिए उपयुक्त बर्तन ᱶ ov /w̃/ ṅ w̃ उं ঁ ঁ अनुनासिक ᱮ le /e/ e e ए এ ଏ अतिप्रवाहित नदियों की बदल...

संथाली भाषा Santhali Bhasha

संथाली भाषा आस्ट्रो-एशियाई भाषा संताली (ओल चिकि: ᱥᱟᱱᱛᱟᱲᱤ) मुंडा परिवार की प्रमुख भाषा है। यह असम, झारखंड, ओड़िशा, छत्तीसगढ, बिहार, त्रिपुरा तथा बंगाल में बोली जाती है। संताली ᱥᱟᱱᱛᱟᱲᱤ ओलचिकी लिपि में "संताली" शब्द बोलने का स्थान भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान तिथि / काल 2001 census – 2011 समुदाय खेरवाड़ मातृभाषी वक्ता 76 लाख भाषा परिवार ऑस्ट्रो-एशियाई मुंडा उत्तर मुंडा खेरवारी संताली उपभाषा महली लिपि ओल चिकि भाषा कोड आइएसओ 639-2 sat आइएसओ 639-3 इनमें से एक: sat – संताली mjx – महली संताली, हो और मुंडारी भाषाएँ ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा-परिवार में मुंडा शाखा में आती हैं। भारत, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में लगभग ७६ लाख लोग यह भाषा बोलते हैं। उसकी अपनी पुरानी लिपि का नाम 'ओल चिकी' है। अंग्रेजी काल में संताली रोमन में लिखी जाती थी। भारत के उत्तर झारखण्ड के कुछ हिस्सोँ मे संताली लिखने के लिये ओल चिकी लिपि का प्रयोग होता है। खेरवाड़ जाति द्वारा बोली जानेवाली भाषा को संताली कहते हैं। संताली दुनिया का सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है।

Pandit Raghunath Murmu पंडित रघुनाथ मुर्मू

पंडित रघुनाथ मुर्मू ओल चिकी लिपि के विकासक उड़ीसा के मयूरभंज जिले में पूर्णिमा के दिन (दहार्दिह) डांडबुस नामक एक गांव में उनका जन्म हुआ था।[1][2] रघुनाथ मुर्मू ओडिशा ट्राइबल डेवलपमेंट सोसाइटी (ओटीडीएस), भुवनेश्वर कार्यालय में मुर्मू की पत्थर की मूर्ति जन्म ०५ मई १९०५ मयूरभंज, उड़ीसा, भारत मृत्यु 1 फ़रवरी 1982 (उम्र 76) व्यवसाय विचारक, नाटककार और लेखक राष्ट्रीयता भारतीय विषय ओलचिकी लिपि तकनीकी पेशे में एक संक्षिप्त कार्यकाल के बाद, उन्होंने बोडोतोलिया हाई स्कूल में अध्यापन का काम संभाला। इस दौरान, उनकी रुचि संथाली साहित्य में हुई। संताली एक विशेष भाषा है, और एक साहित्य है जिसकी शुरुआत 15 वीं शताब्दी प्रारंभ में हुई। उन्होंने महसूस किया कि उनके समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपरा के साथ ही उनकी भाषा को बनाए रखने और बढ़ावा देने के लिए एक अलग लिपि की जरूरत है, और इसलिए उन्होंने संताली लिखने के लिए ओल चिकी लिपि की विकास के काम को उठाया और 1925 में उन्होंने ओल चिकी लिपि का विकास किया। तदोपरांत संताली भाषा का उपयोग करते हुए उन्होंने 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जैसे कि व्याकरण, उप...

Santhal Janjati संथाल जनजाति Santhal Ke Bare Main

सांथाल जनजाति सान्ताल भाषा संथाली भाषा बोलने वाले मूल वक्ता को ही संथाल कहते हैं। किन्तु अन्य जाति द्वारा शब्द 'संताड़ी' को अपने-अपने क्षेत्रीय भाषाओं के उच्चारण स्वरूप "संथाल, संताल, संवतल, संवतर" आदि के नाम से संबोधित किए। जबकि संथाल, संताल, संवतल, संवतर आदि ऐसा कोई शब्द ही नहीं है। शब्द केवल "संथाली" है, जिसे उच्चारण के अभाव में देवनागरी में "संथाली" और रोमन में Santali लिखा जाता है। संथाली भाषा बोलने वाले वक्ता खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, जो अपने को "होड़" (मनुष्य) अथवा "होड़ होपोन" (मनुष्य की सन्तान) भी कहते हैं। यहां "खेरवाड़" और "खरवार" शब्द और अर्थ में अंतर है। खेरवाड़ एक समुदाय है, जबकि खरवार इसी की ही उपजाति है। इसी तरह हो, मुंडा, कुरुख, बिरहोड़, खड़िया, असुर, लोहरा, सावरा, भूमिज, महली रेमो, बेधिया आदि इसी समुदाय की बोलियां है, जो संताड़ी भाषा परिवार के अन्तर्गत आते हैं। संताड़ी भाषा भाषी के लोग भारत में अधिकांश झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम राज्य...